Maha Mrityunjay Sadhna Level 1
Event Date:
November 12, 2023
Event Time:
4:12 pm
Event Location:
अशुद्ध पात्र में दुग्ध डालने पर वह जल्द ही खराब हो जाता है, यदि दुग्ध को बचाना है तो पात्र का स्वच्छ होना आवश्यक है, उसी प्रकार अगर हम अपने जीवन में उत्तम स्वास्थय, सुख, आनंद व आध्यात्मिक मार्ग में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं तो यह आवश्यक है कि हमारा पात्र भी शुद्ध व स्वच्छ हो।
ईश्वर की कृपा हम पर सदैव बरस रही है, बस आवश्यकता है तो सिर्फ उसे स्वीकार करने के लिए खुद को पात्र बनाने की।
इस प्रक्रिया में हम आपके लिए लाए है महामृत्युंजय साधना जोकि अत्यंत ही दुर्लभ व शक्तिशाली साधना है। यह वह साधना है जिसमें भगवान शिव की आराधना की जाती है जिसके अंतर्गत भगवान् महामृंत्युजय की संजीवनी शक्ति के माध्यम से संचित पापों और नकारात्मक ऊर्जाओं को नष्ट किया जाता है।
महामृत्युंजय साधना को करके आत्म ज्ञान के द्वार खुल जाते है, इस साधना के द्वारा बहुत से भक्तों ने मोक्ष को प्राप्त किया हैं जिसमें एक मारकण्डेय ऋषि का नाम भी सम्मिलित है, इस मंत्र के जाप व साधना से उनको अमरत्व की प्राप्ति हुई थी। मृत्यु पर विजय प्राप्त होने के कारण इस मंत्र को महामृत्युंजय मंत्र कहा जाता है।
महामृत्युंजय मंत्र (52 अक्षर)
ॐ ह्रौं जूं सः ॐ भूभुर्व स्वः ।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं ।
उर्वारुकमिव बन्धनांन्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।
ॐ स्वः ॐ भुवः भूः ॐ सः जूँ ह्रौं ॐ ।
मृत्युंजय मंत्र (33 अक्षर)
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् |
मृत्युंजय मंत्र ३२ शब्दों के प्रयोग से बना है तथा इस मंत्र के पहले ॐ लगा देने से कुल ३३ शब्द हो जाते हैं। इसीलिए मृत्युंजय मंत्र को ‘त्रयस्त्रिशाक्षरी’ मन्त्र भी कहा जाता हैं। 33 अक्षर, 33 कोटि अर्थात 33 देवताओ को सम्बोधित हैं :
1. ‘त्र‘ ध्रुव वसु का बोधक है । | 12. ‘पु‘ अजैक का । | 23. ‘ब‘ वरुणऽदित्य का । |
2.‘यम‘ अध्वर वसु का बोधक । | 13. ‘ष्टि‘ अहिर्बुध्न्य का । | 24. ‘न्ध‘ अंशु का । |
3. ‘ब‘ सोम वसु का । | 14. ‘व‘ पिनाक का । | 25. ‘नात‘ भगऽदित्य का । |
4. ‘कम‘ वरुण का । | 15. ‘ध‘ भवानी पति का । | 26. ‘मृ‘ विवस्वान का । |
5. ‘य‘ वायु का । | 16. ‘नम‘ कापाली का | | 27. ‘त्यो‘ इन्द्रऽदित्य का |
6. ‘ज‘ अग्नि का । | 17. ‘उ‘ दिकपति का । | 28. ‘मु‘ पूषऽदिव्य का । |
7. ‘म‘ शक्ति का । | 18. ‘र्वा‘ स्थान का । | 29. ‘क्षी‘ पर्जन्य दिव्य का । |
8. ‘हे‘ प्रभास का । | 19. ‘रु‘ मर्ग का । | 30. ‘य‘ त्वष्टा का । |
9. ‘सु‘ वीरभद्र का । | 20. ‘क‘ धाता का । | 31. ‘मा‘ विष्णुऽदिव्य का । |
10. ‘ग‘ शम्भु का । | 21. ‘मि‘ अर्यमा का । | 32. ‘मृ‘ प्रजापति का । |
11. ‘न्धिम‘ गिरीश का । | 22. ‘व‘ मित्रऽदित्य का । | 33. ‘तात‘ वषट् का बोधक है । |
मृत्युंजय मंत्र का अर्थ:
ॐ – हे ओंकार स्वरूप परमेश्वर शंकर
त्र्यम्बकं – तीन आँखो से शोभायमान आपका
यजामहे – हम पूजन करते है, कृपया हमारे जीवन में
सुगन्धिम् – भक्ति का सुगंध दीजिए,
पुष्टिवर्धनम् – आनंद की वृद्धि कीजिए।
उर्वारुकमिव – जिस प्रकार फल आसानी से
बन्धनान् – पेड़ के बंधन से मुक्त होते है, ठिक वैसे ही
मृत्योर्मुक्षीय – हमें मृत्यु के बंधन से मुक्त करके
मामृतात् – अमृत पद की प्राप्ति दीजिए।